महादेवी वर्मा का जीवन परिचय-Mahadevi Verma ka Jivan Parichay

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Mahadevi Verma ka Jivan Parichay:- महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की प्रख्यात कवित्री है और वह आधुनिक हिंदी कविता में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी है| छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में से एक है| छायावादी युग में  4 स्तम्भ थे उनमें से महादेवी वर्मा एक है| हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा आधुनिक मीरा के नाम से भी जानी जाती है|इस लेख के माध्यम से आपको महादेवी वर्मा का पूरा जीवन परिचय सरल भाषा में बताएंगे|

Table of Contents

महादेवी वर्मा का संक्षिप्त परिचय: Mahadevi Verma ka Jivan Parichay

संक्षिप्त परिचय
नाम                            महादेवी वर्मा
जन्म                           1907 ई.
जन्म स्थान                  फर्रुखाबाद
मृत्यु                            11 सितंबर, 1987
माता का नाम              श्रीमती हेमरानी 
पिता का नाम              श्री गोविंद प्रसाद वर्मा
पति का नाम                डॉ. स्वरूपनारायण वर्मा
प्रारंभिक शिक्षा             इंदौर
उच्च शिक्षा                   प्रयाग
उपलब्धियां                   महिला विद्यापीठ की प्राचार्य,  पदम भूषण पुरस्कार,
                                   सेकसरिया तथा मंगला प्रसाद पुरस्कार,  भारत भारती     
                                   पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि|
                                        
कृतियां                         निहार, रश्मि, नीरजा , संध्या गीत, दीपशिखा|
साहित्य में स्थान            साहित्य में अलंकार विधान छायावादी कवि के रूप में गीत    
                                   आत्मक भावपूर्ण शैली का प्रयोग महादेवी वर्मा जी की देन 
                                    है|

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय: About mahadevi verma in hindi

हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा आधुनिक मीरा के नाम से जानी जाती है, उनका जन्म 26 मार्च 1907 मैं उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नामक शहर में हुआ था|  उनके पिता का नाम गोविंद प्रसाद वर्मा था जोकि भागलपुर के कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत थे|  उनकी माता का नाम हेमराज था जो कि एक कवित्री थी एवं श्री कृष्ण में अटूट श्रद्धा रखती थी  और वे प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ करती थी| 

इसके बिल्कुल विपरीत उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, मांसाहारी तथा हंसमुख व्यक्ति थे|  हिंदी काव्य जगत के दो सर्वश्रेष्ठ कवियों सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को महादेवी वर्मा राखी बांधती थी, उन्होंने निराला जी को लगभग 40 वर्षों तक राखी बांधी थी| 

महादेवी वर्मा की शिक्षा – 

                                                      महादेवी वर्मा की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर (मध्य प्रदेश) में जबकि उच्च शिक्षा प्रयाग इलाहाबाद में हुई थी|  महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया| यहीं पर उन्होंने अपने काव्या जीवन की शुरुआत की थी|  9 वर्ष की छोटी सी अवस्था में ही उनका विवाह स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया था|

किंतु इन्हें दिनों से इनकी माता का स्वर्गवास हो गया और इस विकट स्थिति में भी इन्होंने धैर्य नहीं छोटा और अपना अध्ययन जारी आता इसी परीक्षम के फल स्वरुप  महादेवी वर्मा ने मैट्रिक से लेकर बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तरण की| महादेवी वर्मा बालिकाओं की शिक्षा के लिए भी काफी प्रयास किए और साथ ही साथ नारी की स्वतंत्रता के लिए भी संघर्ष करती रही| महादेवी वर्मा के जीवन पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कला साहित्य साधना पर रविंद्र नाथ टैगोर का गहरा प्रभाव पड़ा|

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महादेवी वर्मा की मृत्यु – 

                                         महादेवी का जीवन एक सन्यासी का जीवन था| उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तखत पर सोई और कभी शीशा नहीं देखा| सन 1966 में पति की मृत्यु के बाद स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगी| भावुकता एवं करुणा महादेवी वर्मा के कार्य की पहचान है और इन्हीं कारणों से महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है| 11 सितंबर को 1987 को महादेवी वर्मा की मृत्यु हो गई|

महादेवी वर्मा की रचनाएं – 

  • निहार
  • रश्मि
  • नीरजा 
  • संध्या गीत
  • दीपशिखा
  • यामा
  • मेरा परिवार 
  • अतीत के चलचित्र
  •  स्मृति की रेखाएं
  •  गिल्लू              

                                                                   

महादेवी वर्मा जी के पुरस्कार – 

                                                                 महादेवी वर्मा के रचनात्मक और तेज बुद्धि ने जल्द ही उन्हें हिंदी भाषा की दुनिया में एक  उच्च पद पर पहुंचाया| 1934 में,  उनके द्वारा रचित “नीरजा” के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन में उन्हें सेकसरिया पुरस्कार से सम्मानित किया| स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधानपरिषद की सदस्य मनोनीत की गई| 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण प्रदान किया, और 1979 में उन्हें  साहित्य अकादमी अनुदान का पुरस्कार दिया गया|  1988 में भारत सरकार ने उदय मरणोपरांत पदम विभूषण प्रदान किया,  जो भारत सरकार का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है| 

आधुनिक गीत काव्या में महादेवी जी का स्थान सर्वोपरि है|  महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में संवेदना दृढ़ता और आक्रोश का अद्भुत संतुलन मिलता है| अध्यापक, कवि, गद्यकार, कलाकार,  समाजसेवी और विदुषी के बहुरंगी मिलन का जीता जागता उदाहरण थी|  उनकी काव्य साधना के लिए संपूर्ण हिंदी जगत सदैव आपका आभारी रहेगा| 

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महादेवी वर्मा की कहानी – 

                                                        महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में उत्तर प्रदेश के जनपद फर्रुखाबाद में एक सुशिक्षित मध्यवर्गीय परिवार में हुआ उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद मुख्य अध्यापक के रूप में कार्यरत थे|और उनकी माता श्रीमती है हेमरानी देवी शिक्षित और धार्मिक विचारों वाली कुशल ग्रहणी थी| माता पिता की पहली संतान महादेवी का जन्म बहुत लंबी प्रतीक्षा और मनौती के पश्चात हुआ था|

कहा जाता है कि वह उनके परिवार ने सात पीढियों के बाद पहली बार कन्या ने जन्म लिया था| अत: उन्हें कुलदेवी दुर्गा के विशेष अनुग्रह का प्रसाद मानकर उनका नाम महादेवी रखा गया| कौन जानता था कि आने वाले समय में महादेवी अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से इस नाम की सार्थकता को भी सिद्ध करेंगे| 

महादेवी ने अपनी आरंभिक शिक्षा घर पर ही पूरी कि अध्ययन के साथ ही वे संगीत और चित्रकला में भी प्रारंभ से ही रुचि रखती थी| 9 वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह श्री रूपनारायण वर्मा से हुआ| इसके फलस्वरूप में इंदौर से अपने ससुराल प्रयाग में आ गई परंतु विवाह के बाद महादेवी ने शिक्षा की राह चुनी| उन्होंने प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास कर पूरे प्रांत में प्रथम स्थान हासिल किया उन्हें राजकीय छात्रवृत्ति भी प्राप्त होने लगी| महादेवी की कविताएं पत्र पत्रिकाओं में छपने लगी| काव्य रचना का यह सृजक अबाध गति से चलता रहा| 

ग्यारहवा दर्जा पास करते-करते काव्य स्मेलनो तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेकर महादेवी सैकड़ों तंबू और पुरस्कारों से सुशोभित हुई| उस समय की परचलित प्रसिद्ध कविताएं प्रकाशित होने लगी| तो काव्य मर्दियो का ध्यान भी इस नवीन प्रांजल प्रतिभा की ओर आकर्षित होने लगा|

महादेवी ने संस्कृत में M.A तक की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की अपने शैक्षणिक योग्यता के कारण M.A पास करते ही उन्हें  प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्राचार्य का पद मिला|| काफी लंबे समय तक महादेवी ने इस पर अपने दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वाह किया| वे नारी शिक्षा,नारीजाग्रतिऔर नारी संवाद के प्रति सदा सजक रही| 

उनकी सुभद्रा कुमारी चौहान से प्रगाढ़ मैत्री थी तो निराला पंत और प्रसाद के प्रतिआपनीय अगाध श्रद्धा वे इलाहबाद से प्रकाशित होने  वाली मासिक पत्रिका की संपादक भी रही| सन 1955 में उन्होंने साहित्यकारों के साहित्य सृजन हेतु प्रयाग में गंगा किनारे साहित्यकार संसद की स्थापना भी की| जीवन की विविधता का यही विशिष्ट महादेवी की साहितिक और कलात्मक अभिव्यक्तियों में भी देखा जा सकता है| असमय वैव्ध्य ने महादेवी के जीवन को आत्मलीन शांत और एकाकी अवश्य बनाया लेकिन उनका व्यक्तित्व अंत्यत उदास  मिलनसार और परुपकारी था| 

अपने जीवन में महादेवी  ने गरीबों और दिन दुखियो की बहुत सेवा सहायता की| कहा जाता है की महादेवी बहुत दीक्षा लेकर दिक्षिनी बनना चाहती थी|  महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद वे आप ही  समाज सेवा में लग गई| महादेवी के संससंस्मरण और रेखाचित्रों में उनके बेह्र्मुखी व्यक्तित्व की अंत्यंत जीवन अभिव्यक्ति होती है| लेकिन उनकी कविताओं में वेदना, करुणा और अकेलेपन की आत्मलीनता ही अधिक व्यक्त होती है| जो इनके अन्तर्मुखी व्यक्त को उजागर करती है| 

उनके व्यक्तित्व का यह अंतर्विरोध  उनके पाठकों के लिए ही नहीं वर्णआलोचकों के लिए एक समस्या बन गया है| अगर महादेवी के गद्य और पद्य साहित्य को आमने सामने रख दिया जाए तो दोनों दो अलग-अलग भिन्न व्यक्तियों की परस्पर विरोधी चेतना की रचनाएं लगेंगी| कविता, गद्य, चित्र, संगीत राष्ट्रीय आंदोलन, नारी चेतना आदि कितने ही क्षेत्र हैं जिनमें महादेवी अपनी म्हिस्य जीवन का पुनह स्पर्श लेकर अम्र्ता प्रदान करती चली गई|

सुंदरिया और माधुरी की छटा बिखरती हुई प्रकृति पुत्री महादेवी 11 सितंबर सन 1987 को प्रकृति के आंचल में जा सोई| देश की ऐसी अत्यंत विलक्षण प्रतिभा को कोटि-कोटि नमन|

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महादेवी वर्मा की भाषा शैली – 

                                                                महादेवी वर्मा जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत के सरल और तत्सम शब्दों का मेल है| इनकी भाषा मधुर, कोमल व सरल है| इनके काव्या में रस, छंद और अलंकार का प्रयोग किया गया है| इनकी रचनाओं में गुणात्मक, विचारात्मक और भावनात्मक शैली है| 

महादेवी वर्मा की कविताएं – 

कोयल

डाल हिलाकर आम बुलाता,

तब कोयल आती है |

नही चाहिए इसको तबला,

नही चाहिए हारमोनियम ,

छिप-छिप कर पत्तो में यह तो,

गीत नया गाती है|

चिक-चिक  मत करना रे निक्की,

भोंक न रोजी रानी,

गाना एक सुना करते हैं,

सब तो उसकी बानी|

आम लगेगे इसलिए यह,

गाती मंगल गाना,

आम मिलेगे सबको इसको,

नही एक भी खाना|

सबके सुख के लिए बेचारी,

उड़-उड़ क्र आती है,

आम बुलाता है तब कोयल,

काम छोड़ आती है|

जो तुम आ जाते एक बार

 कितनी करुणा कितने संदेश

 पथ मे बिछ जाते बन पराग 

 गाता प्राणों का तार तार

अनुराग भरा उन्माद राग 

आंसू लेते वे पथ पखार  

जो तुम आ जाते एक बार 

हंस उठते पल में आद्र नयन 

घुल जाता होठों से विषाद

छा जाता जीवन में बसंत

लुट जाता चिर संचित विराग

आंखें देती सर्वस्व वार 

जो तुम आ जाते एक बार||

मैं हैरान हूं

मैं हैरान हूं यह सोच कर,

किसी औरत ने क्यों नहीं,

उठाई उंगली तुलसीदास पर?,

जिसने कहा था,

ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी

यह सब ताड़न के अधिकारी,

मैं हैरान हूं,

किसी औरत ने क्यों नहीं,

जलाई मनुस्मृति ?

जिसने पहनाई उन्हें,

गुलामी की बेड़ियां,

मैं हैरान हूं,

किसी औरत ने क्यों नहीं

धिक्कारा उस राम को?

जिसने गर्भवती पत्नी सीता को,

परीक्षा के बाद भी निकाल दिया,

घर से बाहर धक्के मार कर,

मैं हैरान हूं,

किसी औरत ने लानत  नहीं,

भेजी उन सब को ,

जिन्होंने औरत को,

समझ कर वस्तु,

लगा दिया था दांव पर,

होता रहा नपुंसक योद्धाओं के बीच,

समूची औरत जाति का चीर हरण,

महाभारत में,

मैं हैरान हूं यह सोचकर, 

किसी औरत ने क्यों नहीं किया?

संयोगिता, अंबा, अंबालिका के

दिनदहाड़े अपहरण का विरोध आज तक,

मैं हैरान हूं,

इतना कुछ होने के बाद भी

क्यों अपना  श्रद्धय  मानकर?

दोस्ती है मेरी मां बहने

उन्हें देवता भगवान मानकर,

मैं हैरान हूं,

उनकी चुपी देखकर,

इसे उनकी सहनशीलता कहू,

या अंधश्रद्धा या फिर,

मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा|| 

सूखे सुमन

था कली के रूप में शैशव-

में अहा सूखे सुमन,

मुस्कुराता था, खिलाती

अंक में तुझको पवन,

खिल गया जब पूर्ण तू-

मंजुल सुकोमल पुष्पवर,

लुब्ध मधु के हेतु मडराने,

लगे आने भ्रमर,

सिन्ग्ध किरणें चंद्र की,

तुझको हंसाती थी सदा,

रात मुझ पर वारती थी ,

मोतियों की संपदा,

लोरियां गाकर मधुप,

निद्रा विवश करते  तुझे,

यतन माली का रहा-

आनंद से भरता तुझे,

कर रहा उठ खेलिया-

 इतरा सदा उद्यान में,

अंत का यह दृश्य आया-

हां कभी का क्या ध्यान में|

सो रहा था अब तू धरा पर-

शुष्क बिखराया हुआ,

गंध कोमलता नही,

मुख मंजू मुरझाया हुआ|

आज तुझको देखकर,

चाहक भ्रमर आता नही,

लाल अपना राग तुझ पर,

प्रात बरसाता नहीं|

जिस पवन ने अंक में-

ले प्यार था तुझको किया,

त्रिव झोंके से सुला-

उसने तुझे भू पर दिया|

कर दिया मधु और सौरभ,

दान सारा एक दिन,

किन्तु रोता कौन है,

तेरे लिए दानी सुमन ?

मत व्यथित हो पुष्प तू ,

किसको सुख दिया संसार ने?

स्वार्थमय सबको बनाया-

है यहां करतार ने|

विश्व में है फूल तू-

सबके हर्दय भाता रहा,

दान कर सर्वस्व फिर भी,

हाय हर्षता रहा,

जब ना तेरी ही दशा पर,

दुख हुआ संसार को,

कौन रोएगा सुमन

हमसे मनुज नि:सार को||

 FAQ 

महादेवी वर्मा का दूसरा नाम क्या है?

महादेवी वर्मा का दूसरा नाम आधुनिक मीरा है|

महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ?

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नामक शहर में हुआ |

महादेवी वर्मा के पिता का क्या नाम था?

महादेवी वर्मा के पिता का नाम श्री गोविंद प्रसाद वर्मा था|

महादेवी वर्मा की माता का क्या नाम था?

महादेवी वर्मा की माता का नाम श्रीमती हेमरानी था|

महादेवी वर्मा के पति का क्या नाम था?

महादेवी वर्मा के पति का नाम डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा था|

महादेवी वर्मा की मृत्यु कब हुई थी ?

महादेवी वर्मा की मृत्यु हो 11 सितंबर 1987 को हुई थी|

महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है?

नीहार
रश्मि
नीरजा
सांध्यगीत
अग्निरेखा
दीपशिखा
सप्तपर्णा
संक्षेप में

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