Harivansh Rai Bachchan Poems :- श्री हरिवंश राय बच्चन का आधुनिक हिंदी कविताओं में महत्वपूर्ण स्थान है| हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 में इलाहाबाद (प्रयाग) में एक साधारण परिवार में हुआ| उनके पिता का नाम प्रताप नारायण था जो अपने मधुर स्वभाव के कारण सभी लोगों के प्रिय थे |
बच्चन जी की आरंभिक शिक्षा काशी में हुई सन 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इन्होंने अंग्रेजी विषय में स्नातकोतर की उपाधि प्राप्त की और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पी एच डी की उपाधि प्राप्त की तत्पश्चात वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य करने लगे वह आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से भी संबंध रखते थे|
सन 1966 में बच्चन जी राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए| भारत सरकार ने बच्चन जी को “पदम विभूषण” की उपाधि से विभूषित किया सन 2003 में मुंबई में इस महान साहित्यकार का निधन हो गया|
जयशंकर प्रसाद का पूरा जीवन परिचय
हरिवंशराय बच्चन जी की कविताएं: Harivansh Rai Bachchan Poems
हरिवंश राय बच्चन जी का जीवन परिचय |
हरिवंशराय बच्चन जी की कविताएं |
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती |
जिंदगी की सच्चाई |
यहां सब कुछ बिकता है |
प्यास लगी थी गजब की |
मधुशाला |
जो बीत गई सो बात गई |
दुखी मन से कुछ भी ना कहो |
अब मत मेरा निर्माण करो |
प्रेरणादायक |
वक्त |
तू छोड़ दे कोशिशें इंसानों को पहचानने की |
दोस्ती |
संवेदना |
जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाइए की उदास होने का वक्त ना मिले |
आपका ज्ञान आपको हक दिलाता |
अग्निपथ |
ऐसे मैं मन बहलाता हूं |
आदर्श प्रेम |
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
लहरों से डर कर
नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती|
नन्ही चींटी जब दाना
लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर,
सौ बार फिसलती है|
मन का विश्वास रगों में
साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना
ना अखरता|
आखिर उसकी मेहनत बेकार
नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती|
डुबकियां सिंधु में गोताखोर
लगाता है,
जा जाकर खाली हाथ
लौट कर आता है|
मिलते नहीं सहज ही मोती
गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी
हैरानी में|
मुट्ठी उसकी खाली हर बार
नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती|
असफलता एक चुनौती है,
इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई,
देखो और सुधार करो|
जब तक न सफल हो,
नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर
मत भागो तुम|
कुछ किए बिना ही
जय जयकार नहीं होती|
कोशिश करने वालों की,
कभी हार नहीं होती|
कोशिश करने वालों की,
कभी हार नहीं होती|
जिंदगी की सच्चाई
हारना तब आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई अपनों से हो,
और जितना तब आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई अपने आप से हो,
मंजिल मिले यह तो मुकद्दर की बात है,
हम कोशिश भी ना करें,
यह तो गलत बात है,
किसी ने बर्फ से पूछा कि,
कि आप इतने ठंडे क्यों हो,
बर्फ ने बड़ा अच्छा जवाब दिया,
मेरा अतीत में पानी,
मेरा भविष्य भी पानी,
फिर गर्मी किस बात पर रखो,
कितना भी अच्छा है ,दोस्त
औकात का पता चलता है,
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को,
अपनों का पता चलता है,
सीख रहा हूं अब मैं भी,
इंसानों को पढ़ने का हुनर,
सुना है, चेहरे पर किताबों से ज्यादा लिखा होता है,
रब ने नवाजा हमें जिंदगी देकर
और हम सोहरत मांगते रह गए,
जिंदगी गुजार दी सोहरत के पीछे,
फिर जीने की मोहलत मांगते रह गए,
ये, कफन ये जनाजे, ये कब्र
सिर्फ बातें हैं मेरे दोस्त…..
वरना मर तो इंसान तभी जाता है,
जब याद करने वाला कोई ना हो.
ये समंदर भी, तेरी तरह खुदगर्ज निकला,
जिंदा थे तो तैरने न दिया,
और मर गए तो डूबने ना दिया…..
क्या बात करें इस दुनिया से,
हर शख्स के अपने अफसाने हैं,
जो सामने है उसे लोग बुरा कहते हैं,
और जिसे कभी देखा ही नहीं उसे सब खुदा कहते हैं,
आज मुलाकात हुई,
जाती हुई उम्र से..
मैंने कहा जरा ठहरो तो,
वह हंसकर, ईठलाते हुए बोली..
मैं उम्र हूं ठहरती नहीं,
पाना चाहते हो मुझ को,
तो मेरे हर कदम के संग चलो,
मैंने भी मुस्कुराते हुए कह दिया…
कैसे चलो मैं बनकर तेरा हमकदम,
तेरे संग चलने, पर छोड़ना होगा ,
मुझको मेरा बचपन, मेरी नादानी, मेरा लड़कपन,
तू ही बता दे..
कैसे समझदारी की दुनिया अपना लो,
जहां है नफरतें , दूरियां, शिकायतें और अकेलापन,
मैं तो दुनिया एक चमन में बस एक मुसाफिर हूं,
गुजरते वक्त के साथ, बस यूं ही गुजर जाऊंगा,
करके कुछ आंखों को नम,
कुछ दिनों में यादें बनकर बस जाऊंगा|
यहां सब कुछ बिकता है
यहां सब कुछ बिकता है,
दोस्तों रहना जरा संभल के ,
बेचने वाले हवा भी बेच देते हैं,
गुब्बारों में डाल के,
सच बिकता है, झूठ बिकता है,
बिकती है हर कहानी,
तीन लोक में फैला फिर भी,
बिकता है बोतल में पानी,
कभी फूल की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोगे ,
उस दिन टूट कर बिखर जाओगे,
जीना है तो पत्थर की तरह जियो,
जिस दिन तराशे गए,
खुदा बन जाओगे||
प्यास लगी थी गजब की
जब प्यास लगी थी गजब की,
मगर पानी में जहर था,
पीते तो मर जाते,
और ना पीते तो भी मर जाते हैं,
बस यही दो मसले जिंदगी भर ना हल हुए,
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब मुकम्मल हुए,
वक्त ने कहा कि काश थोड़ा और सब्र होता,
और सब ने कहा कि काश थोड़ा और वक्त होता,
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब,
आराम कमाने निकलता हूं आराम छोड़कर,
हुनर सड़कों पर तमाशा करता है और,
किस्मत महलों में राज करती है,
शिकायतें तो बहुत है तुझसे ऐ जिंदगी,
पर चुप इसलिए हूं कि,जो तूने दिया,
वह भी बहुतों को नसीब नहीं होता,
अजीब सौदागर है यह वक्त भी,
जवानी का लालच देकर बचपन ले गया,
अब अमीरी का लालच देकर जवानी ले गया,
लौट आता हूं वापस घर की तरफ,
हर रोज थका हारा,
आज तक समझ नहीं आया,
कि जीने के लिए काम करता हूं,
या काम करने के लिए जीता हूं,
थक गया हूं तेरी नौकरी से ऐ जिंदगी,
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे,
भरी जेब ने दुनिया की पहचान कराई,
और खाली जेब में अपनों के,
जब लगे पैसे कमाने तो समझ आया,
शौक तो मां बाप के पैसों से पुरे होते थे
अपने पैसे से तो सिर्फ जरूरतें पूरी होते हैं,
हंसने की इच्छा ना हो,
तो भी हंसना पड़ता है,
कोई पूछे तो कैसे हो?
तो मजे में हूं कहना पड़ता है||
यह जिंदगी का रंगमंच है दोस्तों,
यहां हर एक को नाटक करना पड़ता है,
माचिस की ज़रूरत यहां नहीं पड़ती,
यहां आदमी, आदमी से जलता है,
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
यह ढूंढ रहे हैं कि मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं?
पर आदमी है नहीं ढूंढ रहा है,
कि जीवन में मंगल है या नहीं,
मंदिर में फूल चढ़ा कर आए,
तो यह एहसास हुआ,
पत्थरों को मनाने में,
फूलों का क़त्ल कर आए हम,
गए थे गुनाहों की माफ़ी मांगने,
वहां एक और गुनाह कर आए हम||
वहां एक और गुनाह कर आए हम||
मधुशाला
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, आज अपने ही हाथों से पिला लूंगा प्याला,
पहले भोग लगा लूं तेरा, फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला,
प्यास तुझे तो विश्व तपाकर पूर्ण निकालूंगा हाला,
एक पाव से साकी बनकर नाचूंगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुरता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूंगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला,
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भर कर तू बनता है पीने वाला,
मैं तुझको छक छलका करता,मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला,
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है,भरकर कविता का प्याला,
कभी ना कण, भर खाली होगा लाख पिए, 2 लाख पिए,
पाठकगण है पीने वाले ,पुस्तक मेरी मधुशाला||
पाठकगण है पीने वाले ,पुस्तक मेरी मधुशाला||
जो बीत गई सो बात गई
अंबर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फ़िर कहां मिले,
पर बोलो टूटे तारों पर
अंबर कब शोक मनाता है,
जो बीत गई सो बात गई,
जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया,
मधुबन की छाती को देखो,
सुखी कितनी इसकी कलियां,
मुझाई कितनी वल्लरिया ,
जो मुझाय फिर कहां खिली,
पर बोलो सूखे फूलों पर,
कब मधुबन शोर मचाता है,
जो बीत गई, सो बात गई,
जीवन में मधु का प्याला था,
तुमने तन मन दे डाला था,
वह टूट गया तो टूट गया,
मदिरालय का आंगन देखो,
कितने प्याले हिल जाते हैं ,
मिट्टी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं वह कब उठते हैं,
पर बोलो टूटे प्यालो पर,
कब मदिरालय पछताता है,
जो बीत गई ,सो बात गई,
जो बीत गई, सो बात गई,
मृदु मिट्टी के बने हुए,
मधु घट फूटा ही करते हैं,
लघु जीवन लेकर आए हैं,
प्याले टूटा ही करते हैं,
फिर भी मदिरालय के अंदर मधु के घट है,
मधु प्याले है जो मादकता के मारे हैं,
मधु लूटा ही करते हैं,
वह कच्चा पीने वाला है,
जिसकी ममता घट प्यालो पर,
जो सच्चे मधु से जला हुआ,
कब रोता है, चिल्लाता है,
जो बीत गई, सो बात गई,
जो बीत गई, सो बात गई||
दुखी मन से कुछ भी ना कहो
दुखी मन से कुछ भी ना कहो,
व्यर्थ उसे है ज्ञान सिखाना,
व्यर्थ उसे जा दर्शन समझाना,
उसके दुख से दुखी नहीं हो,
तो बस दूर रहो,
दुखी मन से कुछ भी ना कहो,
उसके नैनो का जल खारा,
है गंगा की निर्मल धारा,
पावन कर देगी तन मन को,
क्षण भर साथ रहो,
दुखी मन से कुछ भी ना कहो,
देन बड़ी सबसे यह विधि की,
हो समता इससे किस निधि की?
दुखी दुख को कहो,
भूल कर उसे दीन ना कहो,
दुखी मन से कुछ भी ना कहो,
दुखी मन से कुछ भी ना कहो||
अब मत मेरा निर्माण करो
अब मत मेरा निर्माण करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
तुमने न बना मुझको पाया,
युग-युग बीते तुमने मै न घबराया,
भूलो मेरी विह्लता को,
निज लज्जा का तो ध्यान करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
इस चक्की पर खाते चक्कर,
मेरा तन मन जीवन जर्जर ,
हे कुंभकार मेरी मिटटी को ,
और न अब हैरान करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
कहने की सीमा होती है,
सहने की सीमा होती है,
कुछ मेरे भी वश में,
कुछ सोच-समझकर,
मेरा भी अपमान करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
अब मत मेरा निर्माण करो||
प्रेरणादायक
मुट्ठी में कुछ सपने लेकर,
भरकर जेबों में आशाएं|
दिल में है अरमान यही,
कुछ कर जाए… कुछ कर जाए,
सूरज का तेज नहीं मुझ में,
दीपक सा जलता देखोगे…
अपनी हद रोशन करने से,
तुम मुझको कब तक रोकोगे,
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं,
जिसको नदियों ने सींचा है,
बंजर माटी में पलकर मैंने,
मृत्यु से जीवन खींचा है,
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ,
सीसे कब तक तोड़ोगे,
मिटने वाला मैं नाम नहीं,
तुम मुझको कब तक रोकोगे|
इस जग में जितने जुल्म नहीं,
उतने सहने की ताकत है,
तानो के भी शोर में रहकर,
सच कहने की आदत है,
मैं सागर से भी गहरा हूं,
तुम कितने कंकर फेंकोगे,
चुन-चुन कर आगे बडूगा मैं,
तुम मुझको कब तक रोकोगे|
वक्त
ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है|
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसकी जितनी जरूरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे|
जिंदगी का फलसफा,
भी कितना अजीब है,
शामे कटती नहीं, और
साल गुजरते चले जा रहे हैं….
एक अजीब सी दौड़ है ये जिंदगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं|
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना|
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूं मुझमे कोई फरेब नहीं है,
जल जाते हैं मेरे अंदाज से मेरे दुश्मन,
क्योंकि एक मुद्दत से मैंने ना,
मोहब्बत बदली और ना दोस्त बदले||
एक घड़ी खरीद कर,
हाथ मे क्या बांध ली…
वक्त पीछे ही पड़ गया मेरे..|
सोचा था घर बना कर बैठूंगा,
सुकून से पर घर की जरूरतों,
ने मुसाफिर बना डाला,
सुकून की बात मत कर ऐ गालिब…
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता|
जीवन की भाग-दौड़ में क्यूं वक़्त के साथ,
रंगत खो जाती है हंसती खेलती जिंदगी,
भी आम हो जाती है…
एक सवेरा था जब हंस कर उठते थे हम,
और आज कई बार बिना मुस्कुराए ही शाम हो जाती है|
कितने दूर निकल गए रिश्तो को निभाते निभाते…
खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते…
लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहुत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते…
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी कुछ अनमोल लोगों से रिश्ता रखता हूं|
तू छोड़ दे कोशिशें इंसानों को पहचानने की
बचपन की ख्वाहिशे आज भी खत लिखती है मुझे,
शायद बेखबर है इस बात से कि वे जिंदगी अब इस पते पर नहीं रहती|
यह जीवन है साहब,उलझेगे नहीं तो सुलझेगे कैसे,
और बिखरेगे नहीं तो भी निखरेगे कैसे,
गुजर गया आज का दिन भी यूं ही बेवजा,
ना मुझे फुर्सत मिली तुझे ख्याल आया|
फुर्सत में याद करना हो तो मत करना,
हम तन्हा जरूर है मगर फिजूल नहीं,
दर्द की बारिशों में हम अकेले ही थे,
जब बरसी खुशियां ना जाने भीड़ कहां से आई,
जो लोग दिल के अच्छे होते हैं,
दिमाग वाले अक्सर उनका जम कर फायदा उठाते हैं,
माना मौसम भी बदलते हैं मगर धीरे-धीरे,
तेरे बदलने की रफ्तार से तो हवाएं भी हैरान है,
सिर्फ हम ही हैं तेरे दिल में,
बस यही गलतफहमी हमें बर्बाद कर गई,
इस तरह कड़वाहट आई उसकी बातों में, आज
आखिरी खत दीमक से भी ना खाया गया,
सहम सी गई है ख्वाहिशें,
जरूरत नहीं शायद उनके ऊंची आवाज में बात की होगी|
तू छोड़ दे खुशी से इंसानों को पहचानने की,
यहां जरूरत के हिसाब से, सब बदलते नकाब हैं|
अपने गुनाहों पर 100 पर्दे डालकर हर शख्स कहता है-
“जमाना बड़ा खराब है”
दोस्ती
मै यादों का किस्सा खोलू तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं…
मैं गुजरे पल को सोचु तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं…
अब जाने कौन सी नगरी में,
आबाद है जाकर मुद्दत से,
मैं देर रात तक जागू तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं,
कुछ बातें थी फूलों जैसी,
कुछ लहजे खुशबू जैसे थे…
मैं शहर-ए-चमन में टहलू तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं,
सबकी जिंदगी बदल गई,
एक नए सिरे में डल गई,
किसी को नौकरी से फुर्सत नहीं,
किसी को दोस्तों की जरूरत नही,
सारे यार गुम हो गए ,
तुमसे तुम और आप हो गए,
मैं गुजरे पल को सोचु तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं,
धीरे धीरे उम्र कट जाती है,
जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है ….
कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है,
और कभी कभी यादों के सहारे जिंदगी कट जाती है….
किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते,
जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते…
जी लो इन पलों को हंस के मेरे दोस्त,
फिर लोट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ||
संवेदना
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
मैं दुखी जब जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं क्रतज्ञ हुआ हमेशा
रीति दोनों ने निभाई,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है भोज भारी
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
एक भी उछवास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की आशु धारा?
सत्य को मुंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
कौन है जो दूसरे को
दुःख अपना दे सकेगा ?
कौन है जो दूसरे से
दुख उसका ले सकेगा ?
क्यों हमारे बीच धोखे
का व्यपार जारी?
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
क्यों न हम ले मान हम हैं
चल रहे ऐसे डगर पर
हर पथिक जिस पर अकेला
दुख नहीं बंटते परस्पर
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छुपाता
तुम दुखी हो तो सुखी में
विश्व का अभिशाप भारी
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाइए की उदास होने का वक्त ना मिले
जब मुसीबत आए तो समझ जाइए जनाब
जिंदगी हमें कुछ नया सिखाने वाली है,
जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाइए ,
की उदास होने का वक्त ना मिले,
असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो
क्या कमी रह गई है देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम
यह बिना जय जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|
कोई इतना अमीर नहीं कि अपना पुराना वक्त खरीद सके,
और कोई इतना गरीब ही नहीं है कि अपना आने वाला कल बदल न सके,
ढोलत तो भीख मांगने पर भी मिल जाती है
मगर इज्जत कमाने पड़ती है
मजबूरियां देर रात तक जगाती हैं और,
जिम्मेदारियां आपको सुबह जल्दी उठा देती हूं,
तस्वीर में साथ होने से ज्यादा जरूरी है
तकलीफ में साथ होना,
कभी फूलों की तरह मत जीना
जिस दिन खेलोगे बिखर जाओगे
जीना है तो पत्थर बनकर जियो
जिस दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओगे
खुशियां चाहे किसी के साथ बांट लेना,
लेकिन हम अपने गम को
किसी भरोसेमंद इंसान के साथ हैं बांटना ||
आपका ज्ञान आपको हक दिलाता
जीवन पथ जटिल है ये ,
कालचक्र कठिन है ये ,
पग पग में भेदभाव है,
रक्त रंजित पाव है,
जन्म से किसी के सर,
वंश की छांव है,
झूठ के रथ पर सवार,
डाकुओं का गांव है,
किसी के पास छल कपट,
किसी को रूप का वरदान है,
यह सोच कर मत बैठ जा कि ,
यह विधि का विधान है,
बजरहा मिरदंग है,
यह कहता अंग अंग है,
कि प्राणी अभी शेष है,
मान अभी शेष है,
उठा ले ज्ञान का धनुष,
एक कण भी और कुछ मांग मत भगवान से,
ज्ञान की कमान पर लगा दे तो विजय तिलक,
काल के कपाल पर लिख दे तु ये गुलाल से,
कि सेक सकता है कोई,
तो सेक के दिखा मुझे,
हक छीनता आया है जो,
अब छीन के दिखा मुझे,
ज्ञान के मंच पर सब एक समान है,
विधि का विधान पलट दे,
वो ब्रह्मास्त्र ज्ञान है,
तो आज से ठान ले,
ये बात गांठ बांध ले,
कि धर्म के कुरुक्षेत्र में,
ना रूप काम आता है,
ना झूठ काम आता है,
ना जाति काम आति हैं,
सिर्फ ज्ञान ही आपको,
आपका हक दिलाता है ||
सिर्फ ज्ञान ही आपको,
आपका हक दिलाता है ||
अग्नीपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हो घने,हो बड़े ,
एक पत्र छाह भी ,
मांग मत,
मांग मत,
मांग मत,
तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुड़ेगा भी,
कर शपथ,
कर शपथ,
कर शपथ,
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
आशु,सवेद,रक्त से
लथ -पथ ,
लथ -पथ ,
लथ -पथ ||
ऐसे मैं मन बहलाता हूं
सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख दुख,
दश्नकारी सुधियों से
मैं उड़ के छाले से लाता हूं,
ऐसे मैं मन बहलाता हूं,
नहीं खोजने जाता मरहम,
हो कर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावो को,
आंसू के खारे जल से नहलाता हूं,
ऐसे मैं मन बहलाता हूं,
आह निकल मुख से जाती है,
मानव नहीं तो छाती है,
लाज नहीं मुझको,
देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूं||
ऐसे मैं मन बहलाता हूं||
आदर्श प्रेम
प्यार किसी को करना लेकिन,
कहकर उसे बताना क्या,
अपने को अर्पण करना पर,
और को अपनाना क्या ,
गुण का ग्राहक बनना लेकिन,
गाकर उसे सुनाना क्या ,
मन के कल्पित भावों से,
औरों को भ्रम में लाना क्या,
ले लेना सुगंध सुमनो कि,
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या,
प्रेम हार पहनाना लेकिन,
प्रेम पाश फैलाना क्या,
त्याग अंक में पले प्रेम शिशु,
उनमें स्वार्थ बताना क्या,
दे कर ह्रदय ह्रदय पाने की,
आशा व्यर्थ लगाना क्या||
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