जयशंकर प्रसाद का पूरा जीवन परिचय

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Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay शुरुआत एक छोटी सी कहानी से करते हैं ताकि प्रसाद जी के जीवन में आपकी रूचि  बड़े और तथ्यों को याद रखना आपके लिए आसान हो जाए|  एक बार की बात है महादेवी वर्मा ने जयशंकर प्रसाद जी  से मिलने का मन बनाया |

 महादेवी वर्मा को तो आप जानते ही होंगे| छायावाद की प्रसिद्ध कवित्री जिन्हें आत्मिक मीरा भी कहा जाता है| आश्चर्य की बात तो यह थी कि ना तो महादेवी वर्मा ने जयशंकर प्रसाद जी को देखा था और ना ही जयशंकर प्रसाद जी ने महादेवी वर्मा को उस समय सोशल मीडिया का जमाना तो था नहीं उस समय तो कवि कविता के माध्यम से ही एक दूसरे से परिचित होते थे | 

उस दिन महादेवी भागलपुर से प्रयागराज जा रही थी तो उन्होंने सोचा क्यों ना कुछ देर बनारस में रुक कर युग के सबसे बड़े महाकवि से भेंट कर ली जाए | उन्हें लगा था कि जयशंकर प्रसाद जी इतने बड़े कवि हैं पूरे भारत में उनकी चर्चा है तो बनारस का तो बच्चा-बच्चा उन्हें जानता ही होगा|  

यह सोचकर उन्होंने एक, दो तांगे वालों से उनका पता पूछा पर उनको स्टिक उत्तर नहीं मिला अंत में उन्होंने  निराश होकर इलाहाबाद लौट जाने का निर्णय लिया | तभी एक तांगे वाले ने आकर उनसे पूछा सुंघनी साहू के घर जाना है क्या? 

महादेवी को यह नाम सुनकर थोड़ा अजीब लगा| फिर उन्होंने सोचा कि कोई साहुकार जी होंगे जो तंबाकू वगैरह सुंघते होंगे| अंत में उन्होंने तांगे वाले से ही पूछ लिया कि यह सुंघनी साहू करते क्या है?  तब पता चला कि खैनी बेचते हैं| तब महादेवी जी को आ गया गुस्सा  तो उन्होंने कहा मुझे किसी तंबाकू व्यापारी से नहीं मिलना जिसे मिलना था वह कविताएं लिखते हैं| तो तांगे वाले ने भी दुगनी गर्ज के साथ कहा हमारे सुंघनी साहू भी बड़े-बड़े कविता रचते है | 

तब महादेवी जी को लगा तांगेवाला ना सही पर सुंघनी साहू जरूर जय शंकर प्रसाद को जानते होंगे| इसी आशा के साथ में वह सुंघनी साहू से मिलने पहुंच गई| जब दोनों की भेंट हुई तब जाकर पता चला कि जयशंकर प्रसाद को ही सुंघनी साहू के नाम से जाना जाता है| जयशंकर प्रसाद जी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने तंबाकू का व्यापार तो किया पर कभी भी कविता का व्यापार नहीं किया|

Table of Contents

जयशंकर प्रसाद जी का परम्भिक जीवन – Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay

शंकर की नगरी काशी में  30 जनवरी 1889 मैं जन्मे बालक को माता मुन्नी देवी और पिता बाबू देवीप्रसाद ने जयशंकर प्रसाद नाम दिया | प्रसाद जी के पितामह अथार्थ दादा जी के जमाने से ही उनका परिवार सुर्खी और जर्दे के व्यापार में संग्लन था पर उनके यहां साहित्यकारों को खूब  सम्मान मिलता था कहा जाता है कि बचपन में जयशंकर प्रसाद जी का नाम झारखंडी था| प्रसाद जी का एक तीसरा नाम भी था |

जयशंकर प्रसाद जी की शिक्षा दीक्षा

यह जानकर आश्चर्य होगा कि जयशंकर प्रसाद मात्र सातवीं कक्षा तक की  पढ़े थे| ना जाने कितने लोगों ने सातवीं पास जयशंकर प्रसाद की रचनाओ पर रिसर्च करके PHD तक की उपाधि प्राप्त की है| इससे यह बात सिद्ध होती है कि ज्ञान कभी भी डिग्रियों का मोहताज नहीं होता| प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी |  

फिर आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें काशी के कविंस कॉलेज में भेज दिया गया| वही कविंस कॉलेज जहां कभी भारकांडों का भी नामांकन कराया गया था| अभी जयशंकर प्रसाद सातवीं कक्षा में ही थे  विधाता ने बड़ी मुश्किलता से उनके भाग्य में लिखे पित्र सनेह को मिटा दिया| 1900 ई. में पिता बाबु देवी प्रसाद का निधन हो|  पिताजी की मृत्यु के बाद बड़े भाई शंभूरत्न जी ने उनकी शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही करदी | 

और उन्होंने सव्धाये के द्वारा ही वेद, पुराण ,उपन्सिध,इतिहास,सुदर्शन ,कव्यदर्श,कव्यपर्काश आदि का गहरा अध्ययन किया जो उनकी रचनाओं अर्धथालिका का अर्धार्स्त्न बना |

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जयशंकर प्रसाद जी के गुरु/शिक्षक

जयशंकर प्रसाद जी ने जिन गुरुओ से शिक्षा पाई उनमे सबसे पहला नाम मोहिनी लाल गुप्त (रसमय सिद्ध) का लिया जाता है| वे रसमय सिद्ध नाम से काव्य रचना भी किया करते थे| प्रसाद जी ने 9 वर्ष की अवस्था में ही  पहला काव्या रचकर मोहनी लाल गुप्त को ही सुनाया था|  

मोहनी लाल गुप्त जी के अलावा उन्होंने  गोपाल बाबा, दीनबंधु ब्रह्मचारी, हरिहर महाराज जैसे गुरुओं का भी सानिध्य प्राप्त किया| बनारस सिंधु विश्वविद्यालय के संस्कृत के शिक्षक महामहोपाध्याय  पंडित देवी प्रसाद शुक्ल  उनके काव्य गुरु थे | 

पिता की मृत्यु के बारे में उनकी शिक्षा पटरी आ गई थी 1905 ई. में उनकी माता मुन्नी देवी की मृत्यु हो गई| वह इस शोक से उभर भी नहीं पाए थे की 1907 ई. में  बड़े भाई (शंभू रतन) भी उन्हें छोड़कर स्वर्ग सिधार गए थे | 17,18 साल की कच्ची उम्र में सारे परिवार की जिम्मेदारी का भोज उनके कंधों पर आ गया| 

एक और विधवा भाभी की देखभाल करनी थी तो दूसरी और तंबाकू के पारिवारिक व्यवसाय को भी आगे बढ़ाना था| साथ ही विरासत के रूप में जो ऋण का भार मिला था उसे भी ढोना था| ऐसी परिस्थिति में जिन परिजनों से सहयोग की आशा  की जाती है  वही रिश्तेदार संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र रचने लगे|  प्रसाद जी का प्रारंभिक जीवन दुख पीड़ा और संघर्ष से भरा हुआ था|

जयशंकर प्रसाद जी ने एक नहीं दो नहीं बल्कि 3 शादीयां की थी| इन्होंने तीन शादियां क्यों की थी? इसके लिए उनके व्यक्तित्व को जाना जरूरी है|

जयशंकर प्रसाद जी का व्यक्तित्व

प्रसाद जी सिष्ट,पुष्ट बलिष्ट और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे|  यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह 500 दंड और 1000 बैठक रोज लगाया करते थे|  शारीरिक व्यायाम के अलावा वह मानसिक व्यायाम के लिए शतरंज के शौकीन थे| उनके करीबी बताते थे कि वे पाक कला अर्थात भोजन बनाने में भी निपुण थे|  

इन सबके अलावा उनका स्वभाव बहुत सहज और सरल था तथा उनके चेहरे पर हमेशा एक मधु मुस्कान खिली रहती थी | देव बड़े विनोद प्रिय अर्थात हंसी मजाक वाले व्यक्ति थे| मित्रों के साथ बड़े मजाकिया अंदाज में पेश आते थे वैसे तो उनकी मित्र मंडली बहुत बड़ी नहीं थी पर जितने भी मित्र थे वे उनसे बडी आपनियता रखते थे |

जयशंकर प्रसाद जी का वैवाहिक जीवन

जयशंकर प्रसाद जी का पहला विवाह 20 वर्ष की आयु 1909 ई. में विंध्यवासिनी देवी के साथ हुआ| जीवन में दुख और अकेलेपन की सेह राते काटने के बाद जब प्रेम और साह चर्या का मधुर प्रभाव इनके जीवन पर फुटा तब शायद हमारे कवि से ईश्वर को भी ईर्ष्या  होने लगी और 1916 ईसवी में ही क्षयरोग अथार्थ टीवी से जूझते हुए उनकी पत्नी उन्हें शोक के सागर में छोड़कर परलोक सिधार गई| हरिवंश राय बच्चन जी ने कहा है ना

“ है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?”

 तो प्रसाद जी ने भी अपने अकेले रात में पुन: प्रेम का दीपक जलाया और 1917 ई. में सरस्वती देवी से दूसरा विवाह कर लिया| पर उसी क्षयरोग की आंधी ने इस दीपक को भी बुझा दिया और प्रसाद जी का जीवन पुन: अंधकार में हो गया| दूसरी पत्नी की मृत्यु के बाद उन्हें पुनर्विवाह ना करने का निर्णय ले लिया पर मित्रों के आग्रह पर और विशेषकर भाभी के बहुत जोर देने पर 1921ई. में  वे तीसरी बार कमला देवी के साथ दाम्पद बन्धन में बंधे | कमलादेवी से ही उन्हें एकमात्र पुत्र रत्नशंकर की प्राप्ति हुई|

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जयशंकर प्रसाद की रचनाएं

जयशंकर प्रसाद की रचनाओं के बिना उनकी जीवनी अधूरी है| आज हम उनकी रचनाओं कविताओ  को कितना सम्मान देते हैं| पर बचपन मैं उन्हें उनकी कविताओं के कारण उन्हें डांट भी पड़ी थी| पिता की मृत्यु के बाद कभी-कभी उनको दुकान पर भी बैठना पड़ता था और वही बैठे-बैठे वह दुकान के बहीखातो के पिछले भागों में कविताएं बनाया करते थे| 

तो एक बार जब बड़े भाई शम्भुरतन की नजर उनकी कविताओं पर पड़ी तो उन्होंने प्रसाद जी को  बहुत डांट दिया और आगे से कविता ना करने की हिरायत दे दी गई| प्रसाद जी के अंदर का कवि कहां  हार मानने वाला था| उन्होंने छिप-छिपाकर  लिखना जारी रखा | और आसपास की पत्रिकाओं में कविताएं भेजते रहे| उनकी पहली प्रकाशित कविता सावन-पंचक है |

 जो 1906 ई. में भारतेंदु पत्रिका में प्रकाशित हुई थी| उस समय जयशंकर प्रसाद कलाधर नाम से लिखा करते थे| कविवर  जयशंकर प्रसाद का रचना संसार काफी व्यापक है उन्होंने कविताएं, कहानियां, नाटक,उपन्यास, निबन्ध आदि कई  विधाओं में कलम चलाई|

जयशंकर प्रसाद जी के जीवन का अंतिम प्रहर

प्रसाद जी का प्रारंभिक जीवन तो शोक और संघर्ष से भरा रहा आगे चलकर उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से  मान, प्रतिष्ठा और यश और कीर्ति भी खूब कमाई| पर उनका अंतिम समय बहुत कष्ट में बीता जनवरी 1937 में उन्हें क्षयरोग ने दबोचा | 

क्षयरोग से संघर्ष करते करते उनका बलिष्ठ शरीर सुख क्र कांटा हो गया और अंत में 15 नवम्बर 1937 ई. में मात्र 48 वर्ष की आयु में माँ हिंदी का ये लाडला पंचतंत्र के शरीर को  त्याग कर परम तत्व में विलीन हो गया| वैसे यह कहना तो सरासर गलत होगा कि उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि अपनी महान रचनाओं के रूप में वे आज भी अमर है|

जयशंकर प्रसाद जी की रचनाओं का संसार बहुत व्यापक है| मैथिलीशरण गुप्त एक महान कवि हैं, प्रेमचंद एक महान कथाकार हैं, मोहन राकेश एक महान नाटककार है, आचार्य शुक्ल एक महान निबंधकार है | परन्तु जयशंकर प्रसाद एक कवि भी है, कथाकार भी,नाटककार भी और निबंधकार भी है कुल मिलाकर कहीं की पूरा हिंदी साहित्य उनके अंदर सिमटा हुआ है| प्रसाद जी के साहित्य को जाने बिना हिंदी का साहित्यकार कभी पूरा नहीं हो सकता|

जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली

जयशंकर प्रसाद जी ने पहले बृजभाषा में कविता लिखना शुरू किया था| प्रसाद जी की जितनी भी प्रारंभिक कविताएं हैं वह सब ब्रजभाषा में ही है| पर बाद में उन्होंने खड़ी बोली में भी रचनाएं की जी की भाषा सरस तो है पर सरल नही है| कोई साधारण या कम पढ़ा लिखा व्यक्ति  प्रसाद जी की रचनाओं को समझने में असमर्थ रह जाता है| क्योंकि उनकी भाषा तत्सम-प्रधान,क्लिष्ट और विविधता पूर्ण है| प्रसाद जी के तीन भाषा शैलियाँ  देखने को मिलती है|

  • ब्रजभाषा (परंपरागत शैली)
  • द्विवेदी युगीन (इतिव्रतात्मक शैली)
  • छायावाद (रहस्यवादी शैली)

जयशंकर प्रसाद जी का वर्ण्य-विषय 

यदि हम तो इनकी रचनाओं को गहराई से पड़े तो हमें पता चलता है कि यहां तीन विषय की प्रधानता थी पहला भारतीय इतिहास और संस्कृति इनके जितने भी नाटक है उनमें भारतीयता का गौरव देखने को मिलता है|  दूसरा विषय प्रेम और वेदना है इनका काव्य संसार प्रेम और वेदना की अभिव्यक्ति है  विशेषकर आंसू में तो प्रेम और वेदना का सबसे ऊंचा स्तर देखने को मिलता है|

 तीसरा जो प्रमुख विषय उनके साहित्य में नजर आता है वह है दर्शन प्रसाद जी ने वेदों, उपन्यासों और विविध दर्शनों का गहरा अध्ययन किया था यही कारण है उनकी रचनाओं में काफी वैधाश्विकता  देखने को मिलती है विशेषकर यदि कमयिनी पढ़ेंगे तो वह पूरे का पूरा दर्शन है|

जयशंकर प्रसाद जी की रचनाएं

कविताएं

नाटक

चंद्रगुप्त,

स्कंद गुप्त,

अजातशत्रु,

ध्रुवस्वामिनी,

राज्यश्री,

 सज्जन,

 विशाख,

जनमेजय का नागयज्ञ,

कामना,

प्रायश्चित,

 एक घूंट,

 करुणालया|

कहानी संग्रह

प्रथम कहानी – ग्राम

प्रथम कहानी संग्रह – छाया,

 प्रतिध्वनी,आंधी ,आकाशदीप,इंद्रजाल|

उपन्यास

कंकाल,

 तितली,

 इरावती (अपूर्ण है)

काव्य संग्रह

 आंसू,

 झरना,

 लहर,

 चित्त्राधारम,

प्रेम पथिक,

 कानन कुसुम,

 महाराणा का महत्व,

 कामायनी( महाकाव्य)|

निबंध

साहित्यिक निबंध                                 ऐतिहासिक निबंध 

भक्ति,                                                      दशरथ युद्ध,

रहस्यवाद,                                                 सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य,

हिंदी कविता का विकास,                              आर्यव्रत का प्रथम सम्राट,

 नाटक का प्रारंभ|                                        मौर्य का राज्य परिवर्तन|

 परीक्षा के लिए जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

जीवन परिचय – जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1889 ईस्वी में काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था| इनके पिता का नाम देवीप्रसाद तथा माता का नाम मुन्नी देवी था| यह तंबाकू के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे| बचपन में ही पर पिता की मृत्यु हो  जाने से इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई| घर पर ही इन्होंने हिंदी,अंग्रेजी,संस्कृत,उर्दू फारसी का गहन अध्ययन किया|

 यह बड़े हंसमुख तथा सरल स्वभाव के थे| इनका बचपन बड़े ही संघर्ष से बीता किंतु दान शिलता के कारण श्रेणी हो गए| इन्होंने अपने पैतृक संपत्ति का कुछ भाग बेचकर ऋण से छुटकारा पाया| अपने जीवन में इन्होंने कभी व्यवसाय की ओर ध्यान नहीं दिया| यह अपना ध्यान कविताओं में ही लगाते थे | क्षयरोग के कारण उनकी मृत्यु सन 1937 में हो गई थी | यह केवल 48 वर्ष के ही थे |

प्रमुख रचनाएं 

 नाटक- चंद्रगुप्त,स्कन्दगुप्त,अजातशत्रु,ध्रुवस्वामिनी,एक घूंट |

कहानी- प्रतिध्वनि, छाया ,इंद्रजाल ,अकाशदीप|

उपन्यास- कंकाल, तितली |

FAQ 

जयशंकर प्रसाद जी का जन्म कब हुआ?

जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1889 को काशी में हुआ

जयशंकर प्रसाद जी के पिता का क्या नाम था?

जयशंकर प्रसाद जी के पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था|

जयशंकर प्रसाद जी की माता का क्या नाम था?

जयशंकर प्रसाद जी की माता का नाम मुन्नी देवी था|

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई?

क्षयरोग के कारण 1937 में केवल 48 वर्ष की आयु में ही इनकी मृत्यु हो गई थी |

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