रेड-हेडेड गिद्ध भी गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically-Endangered) श्रेणी के अंतर्गत आ गए हैं, इनकी संख्या में 91% की गिरावट आई है, जबकि इजिप्टियन गिद्धों की संख्या में 80% तक गिरावट आई है।
इजिप्टियन गिद्ध को 'संकटग्रस्त' (Endangered) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है, जबकि हिमालयन, बियर्ड और सिनेरियस गिद्धों को ‘निकट संकटग्रस्त’ (Near Threatened) श्रेणी में रखा गया है।
वर्ष 2004 में इस गिरावट का कारण डिक्लोफिनेक (Diclofenac) को बताया गया जो पशुओं के शवों को खाते समय गिद्धों के शरीर में पहुँच जाती है।
भारत में गिद्धों की आबादी में कमी का कारण:
डिक्लोफिनेक दवा के जैव संचयन (शरीर में कीटनाशकों, रसायनों तथा हानिकारक पदार्थों का क्रमिक संचयन) से गिद्धों के गुर्दे (Kidney) काम करना बंद कर देते हैं जिससे उनकी मौत हो जाती है।
डिक्लोफिनेक दवा गिद्धों के लिये प्राणघातक साबित हुई। गौरतलब है कि डिक्लोफिनेक से प्रभावित जानवरों के शवों का सिर्फ 0.4-0.7% हिस्सा ही गिद्धों की आबादी के 99% को नष्ट करने के लिये पर्याप्त है।
गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हरियाणा वन विभाग तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी का एक संयुक्त कार्यक्रम है।
गिद्ध संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम
गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र को वर्ष 2001 में स्थापित गिद्ध देखभाल केंद्र के नाम से जाना जाता था।
गिद्ध संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम
यह कार्यक्रम सफल रहा है और गंभीर रूप से संकटग्रस्त तीन प्रजातियों को पहली बार संरक्षण हेतु यहाँ रखा गया था।
गिद्ध संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम
इसके तहत आठ केंद्र स्थापित किये गए हैं और अब तक तीन प्रजातियों के 396 गिद्धों को इसमें शामिल किया जा चुका है।
गिद्ध संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम